मां गुरुद्वारे में करती थीं सेवा बेटा लंगर में खाता था खाना,रहने का नहीं था कोई ठिकाना

भारतीय टीम के विकेटकीपर बल्लेबाज और दिल्ली कैपिटल्स के कप्तान ऋषभ पंत एक समय बहुत ही आर्थिक तंगी से गुजर चुके हैं. 4 अक्टूबर 1997 को उत्तराखंड के रुड़की के रहने वाले ऋषभ पंत मैदान पर काफी शांत नजर आते हैं, लेकिन इस शांत चेहरे के पीछे दुख, दर्द, तकलीफ, पीड़ा और संघर्ष छिपा हुआ है. सफलता के शिखर पर पहुंचने वाले ऋषभ पंत के जिंदगी से जुड़ा वह कहानी जिसे बहुत कम लोग जानते हैं, वह आज आप लोगों के सामने ला रहा हूं.

ऋषभ पंत को सिर्फ 12 साल की उम्र में क्रिकेट सीखने के लिए पिता का साथ छोड़ना पड़ा था. इतनी कम उम्र में पिता से अलग रहना किसी भी बच्चे के लिए आसान नहीं है. ऋषभ पंत को क्रिकेट सीखने के लिए अपनी मां के साथ उत्तराखंड से दिल्ली आना पड़ा था. इसके लिए पंत को पापा और बहन का साथ छोड़ना पड़ा. उसके पापा और बहन उत्तराखंड में ही रह गए.

ऋषभ पंत जब दिल्ली आए तब यहां उसके पास ना तो रहने का ठिकाना था ना ही खाने के लिए पैसे थे. आर्थिक तंगी की वजह से ऋषभ पंत अपने मां के साथ मोतीबाग के गुरुद्वारे में रहने का निर्णय लिया. ऋषभ पंत की मां गुरुद्वारा में रहकर लोगों की सेवा करती थी और दोनों गुरुद्वारा के लंगर का खाना खाते थे.

यह सिलसिला कई महीनों तक चलता रहा. ऋषभ पंत रोज लंगर का खाना खाकर प्रैक्टिस के लिए जाते थे. कुछ दिनों के बाद ऋषभ पंत मां के साथ दिल्ली में ही एक किराया का कमरा लेकर रहने लगे. पंत के पास मैं न खाना था ना पैसा था और ना ही घर था, बस उसके पास हौसला था. जिसको लेकर वह आगे बढ़े और आज उनकी गिनती भारत के टॉप क्रिकेटरों में होती है.
ऋषभ पंत अपना कैरियर बना ही रहे थे कि उन पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. आईपीएल 2017 के दौरान पंत के पिता का दिल का दौरा पड़ने से रुड़की में ही मौत हो गई. ऋषभ पंत उस समय काफी कठिन दौर से गुजर रहे थे, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और पिता के निधन के 2 दिन बाद ही वापस आईपीएल खेलने आ गए. वापस आने के बाद पंत ने आरसीबी के खिलाफ 33 गेंदों में शानदार अर्थशतक लगाया.

ऋषभ पंत की गिनती आज भारत के सबसे बेस्ट विकेटकीपर बल्लेबाज के रूप में होती है. आज उनके साथ उनके पिता नहीं है. इंग्लैंड के खिलाफ अगस्त 2018 में ऋषभ पंत ने टेस्ट क्रिकेट में डेब्यू किया था और यहां पर भी उसने अपना लोहा मनवाया. ऑस्ट्रेलिया के गाबा के मैदान पर उनके द्वारा खेली गई पारी आज भी सभी को याद है, जब उन्होंने हार को जीत में बदल दिया था और ऑस्ट्रेलिया में ऑस्ट्रेलिया को हराने की भूमिका रची थी.

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