14 करोड़ी चाहर को नहीं मिलेगा कोई पैसा, जानें कैसे काम करता है खिलाड़ी सैलरी सिस्टम

चेन्नई सुपर किंग्स के तेज गेंदबाज दीपक चाहर को वेस्टइंडीज के खिलाफ T20 सीरीज के दौरान चोट लगने के कारण टाटा आई पी एल 2022 से बाहर होना उनके और उनके परिवार के लिए बदनसीबी बन गई है. इस चोट ने दीपक चाहर और उसके परिवार को बहुत जबरदस्त आर्थिक चोट पहुंचाया है.

दीपक चाहर को चेन्नई सुपर किंग्स ने अगले 3 साल के लिए प्रत्येक साल 14 करोड़ रुपये की मोटी रकम पर टीम का हिस्सा बनाया था. लेकिन चोट के कारण दीपक चाहर इस पूरे टूर्नामेंट से बाहर हो गए हैं. जिसके चलते उनकी सालाना सैलरी नहीं मिल सकती है.

अब नियमों के अनुसार फ्रेंचाइजी की तरफ से उन्हें कोई रकम भुगतान नहीं किया जाएगा. इसका मतलब उनके और परिवार को बहुत बड़ी आर्थिक क्षति हुई है. आज हम आपको आईपीएल में फ्रेंचाइजी की तरफ से खिलाड़ियों को होने वाले भुगतान की प्रक्रिया के बारे में बता रहे हैं कि यह प्रक्रिया कैसे काम करती है.

जिस रकम में खिलाड़ी की नीलामी होती है वह रकम उस खिलाड़ी की एक साल का वेतन कहा जाता है. इस रकम पर टैक्स काटकर पूरी रकम खिलाड़ी के खाते में ट्रांसफर की जाती है. इस वेतन पर कोई दूसरा व्यक्ति दावा नहीं कर सकता है. आईपीएल जब 2008 में शुरु हुआ था तो उस समय खिलाड़ियों का वेतन यूएस डॉलर में था. 2012 में डॉलर व्यवस्था को समाप्त कर भारतीय रुपये में वेतन दिया जाने लगा.

  • अगर कोई खिलाड़ी पूरे सीजन के लिए उपलब्ध रहता है और उसने एक भी मैच नहीं खेला है तो भी उसको पूरी रकम का भुगतान होता है. उस खिलाड़ी ने कितने मैच खेले हैं यह कोई मायने नहीं रखता है. 2013 में ग्लेन मैक्सवेल को मुंबई इंडियंस ने करीब छह करोड़  रुपये में खरीदा था लेकिन मैक्सवेल उस समय केवल तीन ही मैच खेल पाए थे लेकिन उन्हें पूरी वेतन दी गई थी.
  • अगर कोई खिलाड़ी आईपीएल सीजन शुरू होने से पहले ही किसी कारण से आईपीएल में नहीं खेल पाता है तो ऐसी स्थिति में फ्रेंचाइजी उसको कोई रकम का भुगतान नहीं करता है. अगर कोई खिलाड़ी सीजन में कुछ ही मैचों के लिए उपलब्ध रहता है तो इसके लिए खिलाड़ियों को कुल रकम का 10% ही मिलता है.
  • अगर कोई खिलाड़ी टीम कैंप में रिपोर्ट करता है और सीजन शुरू होने से पहले ही चोटिल हो जाता है और उस सीजन में एक भी मैच में हिस्सा नहीं ले पाता है तो नीलामी की रकम का 50% पैसा लेने का हकदार वह खिलाड़ी होता है. इस नियम का फायदा मोहम्मद शमी और ड्वेन ब्रावो ले चुके हैं.
  • अगर कोई खिलाड़ी टूर्नामेंट के दौरान चोटिल हो जाता है तो ऐसी स्थिति में फ्रेंचाइजी उसके इलाज का पूरा खर्चा उठाता है. 
  • कोई भी फ्रेंचाइजी खिलाड़ी को नीलामी की रकम यानी कि वेतन का भुगतान एक बार में नहीं करता है. यह इस बात पर निर्भर करता है कि फ्रेंचाइजी के पास कितना नगद पैसा मौजूद है और प्रायोजकों से पैसे कैसे आ रहे हैं. इसी आधार पर खिलाड़ियों को वेतन का भुगतान होता है.
  • फ्रेंचाइजी खिलाड़ियों से बातचीत कर दोनों के सहमति अनुसार वेतन का भुगतान करता है. कुछ फ्रेंचाइजी पहले सीजन कैंप से दो-चार दिन पहले खिलाड़ियों को चेक देती है तो कुछ फ्रेंचाइजी आधा पैसा टूर्नामेंट के पहले और आधा पैसा टूर्नामेंट के दौरान देती है. कुछ फ्रेंचाइजी 15-65-20 का फॉर्मूला अपनाती हैं. यानी टूर्नामेंट शुरू होने से पहले रकम का 15%, टूर्नामेंट के दौरान 65% और 20% टूर्नामेंट खत्म होने के बाद तय समय के भीतर दिया जाता है. 

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