‘मिट्टी के घर में रहता था दादा की दया और खुद की मेहनत से बदल दी जिंदगी’

सुदीप कुमार घरामी में क्रिकेट की दुनिया का एक अनसुना नाम है. आप लोगों ने शायद इस खिलाड़ी का नाम सुना भी नहीं होगा. इस खिलाड़ी की कहानी काफी दिलचस्प है, जिन्होंने अपने संघर्ष के बदौलत एक मुकाम पाया है. इसकी कहानी सुनकर आपके भी रोंगटे खड़े हो जाएंगे. रणजी ट्रॉफी 2022 के पहले क्वार्टर फाइनल में बंगाल का मुकाबला झारखंड से हो रहा है और पहले दिन का खत्म होने के बाद बंगाल की टीम काफी मजबूत स्थिति में पहुंच गई थी. इसका श्रेय जिस खिलाड़ी को जाता है उसका नाम है सुदीप कुमार घरामी. घरामी ने इस करो या मरो वाले मुकाबले में शानदार शतक लगाकर बंगाल की टीम को काफी मजबूत स्थिति में ला दिया है.

पहले दिन के खेल समाप्ति के बाद घरामी 204 गेंदों का सामना करते हुए 106 रनों पर नाबाद हैं. दूसरे दिन घरामी इस शतक को बड़े स्कोर में जरुर तब्दील करना चाहेंगे. पहले दिन के खेल समाप्ति के बाद बंगाल का स्कोर 89 ओवर में 1 विकेट के नुकसान पर 310 रन है. इस मैच में शतक लगाने के बाद घरामी एकाएक चर्चा में आ गए हैं और लोगों ने इसे सर्च करना भी शुरू कर दिया है.

सुदीप कुमार घरामी की जिंदगी काफी संघर्षों से भरी हुई है. साल 2020 से पहले घरामी एक मिट्टी के घर में रहता था. उसके परिवार की स्थिति काफी खराब थी. घरामी के पिता राजमिस्त्री का काम करके परिवार का भरण पोषण करते थे. जबकि उनकी माताजी गृहिणी है. घरामी के इस मुकाम पर पहुंचने का सारा श्रेय बीसीसीआई अध्यक्ष सौरभ गांगुली को जाता है. सौरभ गांगुली ने घरामी को अंडर-23 के एक मुकाबले में खेलते हुए देखा था. घरामी के खेल को देखकर सौरव गांगुली काफी प्रभावित हुए और उसे निखारने के लिए फास्टट्रेक करवाया.

संयोग की बात है कि जिस तरह से 1990 में सौरभ गांगुली ने जिस तरह से रणजी ट्रॉफी के फाइनल में अपना डेब्यू किया था. उसी तरह इस युवा खिलाड़ी ने साल 2020 के खिताबी मुकाबले में बंगाल के लिए खेलते हुए सौराष्ट्र के खिलाफ राजकोट के खंडेरी स्टेडियम में पदार्पण किया था. 2019 में अंडर-23 मुकाबला जीतने के बाद कमाए पैसे से घरामी को अपनी संपत्ति बनाने में मदद मिली. सुदीप कुमार घरामी ने एक वेबसाइट को अपनी कहानी बताते हुए कहा है कि ‘मैं नैहाटी में पैदा हुआ था और बचपन से ही मैं क्रिकेटर बनना चाहता था लेकिन हमारे पास पर्याप्त पैसे नहीं थे.

‘मेरे पिताजी राजमिस्त्री का काम करते थे लेकिन मेरे पिताजी वास्तव में मुझे क्रिकेटर बनाना चाहते थे. मुझे जो कुछ चाहिए था वह सब देने के लिए मेरे पिताजी लोगों से उधार लेते थे.’ जाहिर है कि एक मिट्टी के घर में रहने बाला लड़का, जिसके पिताजी मजदूरी करते थे. वह आज इस लेवल का क्रिकेट खिलाड़ी है तो इसके पीछे उसकी कड़ी मेहनत का बहुत बड़ा हाथ है. साथ ही उसके दादा का भरपूर साथ नहीं मिला होता तो शायद घरामी को इस मुकाम तक पहुंचने में और भी लंबा वक्त का इंतजार करना पड़ता.

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